भारत में ड्रग्स महामारी
- Ishrat Kashafi
- 15 मार्च
- 6 मिनट पठन
वर्तमान संदर्भ
भारत एक गंभीर मादक पदार्थ (ड्रग) दुरुपयोग संकट का सामना कर रहा है, विशेष रूप से युवाओं और संवेदनशील वर्गों के बीच। हाल ही में, दिल्ली पुलिस ने इस प्रवृत्ति को रासायनिक मादक पदार्थों (केमिकल ड्रग्स) को "प्रतिष्ठा प्रतीक" मानने की बढ़ती मानसिकता से जोड़ा है, विशेष रूप से युवा पीढ़ी में। यह सांस्कृतिक परिवर्तन नशीली दवाओं की बढ़ती उपलब्धता और उपभोग के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।
नवंबर 2024 में, भारतीय अधिकारियों ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक म्यांमार-पंजीकृत मालवाहक जहाज से 6,000 किलोग्राम मेथामफेटामाइन जब्त किया, जो हाल के इतिहास में सबसे बड़ी मादक पदार्थ बरामदगी में से एक है।
भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की गंभीरता
भारत में मादक पदार्थों का दुरुपयोग एक जटिल समस्या है, जो कई कारकों से प्रेरित है।
नशीली दवाओं के दुरुपयोग के लिए उत्तरदायी कारक
भौगोलिक स्थिति: भारत प्रमुख मादक पदार्थ उत्पादन क्षेत्रों — गोल्डन क्रेसेंट (अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान) और गोल्डन ट्रायंगल (म्यांमार, लाओस, थाईलैंड) के निकट स्थित है, जिससे यह नशीली दवाओं की तस्करी के लिए अत्यधिक संवेदनशील बन जाता है। इसकी झरझरा सीमाएँ और अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से जुड़े समुद्री मार्ग भारत में लगभग 70% अवैध मादक पदार्थों के प्रवाह के लिए उत्तरदायी हैं। म्यांमार वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक देश है।
सामाजिक-आर्थिक कारक:
शिक्षा की कमी: कमजोर शैक्षणिक संस्थान और घटती शिक्षा गुणवत्ता युवा पीढ़ी की आकांक्षाओं को प्रभावित करती है, जिससे वे नशीली दवाओं की ओर आकर्षित होते हैं।
बेरोजगारी और गरीबी: आर्थिक कठिनाइयाँ युवाओं को वास्तविकता से भागने के लिए नशीली दवाओं के सेवन की ओर धकेलती हैं।
चक्रवृद्धि प्रभाव: गरीब परिवारों से आने वाले मादक पदार्थ उपयोगकर्ता अपनी लत को पूरा करने के लिए नशीली दवाओं की तस्करी की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं, जबकि बढ़ती बेरोजगारी युवा पीढ़ी की निराशा को और गहरा करती है।
शहरीकरण और प्रवासन: तीव्र शहरीकरण और पारिवारिक संरचनाओं की कमजोरी अलगाव को बढ़ावा देती है, जिससे व्यक्ति नशीली दवाओं की लत का शिकार हो जाते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक दबाव: सहकर्मी दबाव (पीयर प्रेशर), विशेष रूप से किशोरों और युवा वयस्कों में, मादक पदार्थों के सेवन का एक प्रमुख कारण है। साथ ही, शैक्षणिक या व्यावसायिक दबाव से उत्पन्न तनाव भी लोगों को नशीली दवाओं के उपयोग के लिए प्रेरित कर सकता है।
कानूनों का कमजोर प्रवर्तन: नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम के तहत कड़े प्रतिबंध होने के बावजूद, भ्रष्टाचार, अपर्याप्त संसाधनों और कानूनी खामियों के कारण इनका प्रभावी क्रियान्वयन बाधित होता है।
सरल उपलब्धता: भारत के कई हिस्सों में पारंपरिक रूप से भांग और अफीम की खेती एवं उपयोग के कारण ये आसानी से उपलब्ध हैं। इसके अलावा, ऑनलाइन माध्यमों के जरिए ओपिओइड और नींद की गोलियों जैसी नशीली दवाओं की लत तेजी से बढ़ रही है।
वैश्विक प्रभाव: मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से वैश्विक जीवनशैली के प्रति बढ़ता संपर्क सामाजिक मानकों में बदलाव ला रहा है, जिससे समाज के कुछ वर्गों में नशीली दवाओं का उपयोग अधिक स्वीकार्य होता जा रहा है।
नशीली दवाओं के दुरुपयोग से निपटने के लिए सरकारी पहल
मुख्य विधायी उपाय:
मादक पदार्थ एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम, 1940, मादक द्रव्य और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम (NDPS), 1985 तथा अवैध तस्करी की रोकथाम अधिनियम, 1988— ये प्रमुख कानून भारत में नशीली दवाओं के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं।
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB):
स्थापना: 1986 में
उत्तरदायित्व: भारत में नशीली दवाओं पर रोक लगाने संबंधी प्रयासों का समन्वय करना और अवैध नशीली दवाओं की तस्करी को नियंत्रित करना।
नशा मुक्त भारत अभियान (Nasha Mukt Bharat Abhiyan):
शुभारंभ: 15 अगस्त 2020
उद्देश्य: शिक्षा और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से नशीली दवाओं के दुरुपयोग को कम करना।
नशीली दवाओं की मांग में कमी के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPDDR):
उद्देश्य: शिक्षा, नशामुक्ति और पुनर्वास के माध्यम से अवैध नशीली दवाओं की मांग को कम करना।
भारत द्वारा अनुसमर्थित अंतरराष्ट्रीय संधियाँ:
1961: संयुक्त राष्ट्र मादक द्रव्य सम्मेलन
1971: संयुक्त राष्ट्र मनःप्रभावी पदार्थों पर सम्मेलन
1988: संयुक्त राष्ट्र अवैध मादक पदार्थों और मनःप्रभावी पदार्थों की तस्करी पर सम्मेलन
नशीली दवाओं के दुरुपयोग का प्रभाव
स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव:
15 मिलियन (1.5 करोड़) बच्चे (10 से 17 वर्ष की आयु वर्ग) नशे की लत से पीड़ित हैं।
इंजेक्शन द्वारा नशीली दवाओं का सेवन एचआईवी (HIV) मामलों के 6% के लिए जिम्मेदार है, जिससे हेपेटाइटिस बी और सी का खतरा बढ़ जाता है।
आर्थिक बोझ:
भारत को हर साल लगभग ₹1.44 लाख करोड़ का नुकसान होता है, जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च, उत्पादकता की हानि और अपराध नियंत्रण की लागत शामिल है।
नशे की लत परिवारों की भावनात्मक और आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर डालती है।
युवा वर्ग पर प्रभाव:
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 46% से अधिक नशेड़ी 18 से 30 वर्ष के आयु वर्ग के हैं।
पंजाब सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक है, जहां हर तीसरे घर में नशे की समस्या देखी जाती है।
अपराध में वृद्धि:
नशीली दवाओं का सेवन घरेलू हिंसा, चोरी और अन्य अपराधों के जोखिम को बढ़ाता है।
क्षेत्रीय प्रभाव:
पूर्वोत्तर भारत नशीली दवाओं की तस्करी के लिए संवेदनशील है, क्योंकि यह "गोल्डन ट्रायंगल" (म्यांमार, लाओस, थाईलैंड) के निकट स्थित है।
पंजाब और हरियाणा में नशीली दवाओं की लत और तस्करी की उच्च दरें दर्ज की गई हैं, जहां अफीम और अन्य ओपिओइड्स का सर्वाधिक उपयोग होता है।
सरकारी नीतियों की सीमाएँ:
'नशा मुक्त भारत अभियान' और अन्य सरकारी कार्यक्रमों के बावजूद, सामाजिक कलंक (stigma) और पुनर्वास केंद्रों की कमी जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
एम्स (AIIMS) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 1 में से 38 व्यक्तियों को ही उचित पुनर्वास सेवाएँ मिल पाती हैं।
भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से संबंधित चुनौतियाँ
हथियार तस्करी:
नशीली दवाओं के तस्कर केवल नशीले पदार्थों की तस्करी तक सीमित नहीं रहते, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के माध्यम से हथियारों और आतंकवादियों को भी देश में प्रवेश दिलाते हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा बढ़ जाता है। 2023 में राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर हेरोइन तस्करी के प्रयास को विफल किया।
आतंकवाद को वित्तीय सहायता:
अवैध नशीली दवाओं का व्यापार आतंकवाद को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे उग्रवाद और अस्थिरता को बढ़ावा मिलता है। जम्मू-कश्मीर में लगभग 15% आतंकवादी वित्त पोषण नशीली दवाओं की तस्करी से प्राप्त होता है।
संगठित अपराध को बढ़ावा:
नशीली दवाओं की तस्करी अन्य संगठित अपराधों को भी बढ़ावा देती है, जैसे मानव तस्करी (पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार) तथा नार्को-टेररिज्म (भारत और पाकिस्तान), क्योंकि इन अवैध गतिविधियों के लिए एक जैसे नेटवर्क और आपूर्ति चैनलों का उपयोग किया जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
नशीली दवाओं की लत मानसिक अस्थिरता को बढ़ावा देती है, जिससे तनाव, अवसाद, मतिभ्रम (Psychosis) जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
क्रिस्टल मेथ, कोकीन जैसी नशीली दवाओं का लगातार सेवन करने से मानसिक विकारों की संभावना बढ़ जाती है।
सामाजिक दुष्प्रभाव:
नशे की लत पारिवारिक ताने-बाने को कमजोर कर देती है, जिससे घरेलू हिंसा, बाल शोषण, आर्थिक असुरक्षा और शिक्षा तक सीमित पहुँच जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं।
आर्थिक प्रभाव:
नशीली दवाओं के कारण उत्पादकता में गिरावट आती है, जिससे आर्थिक संसाधन नशे के आदी लोगों के पुनर्वास और उपचार में खर्च होते हैं।
पंजाब सरकार की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में नशे की समस्या के कारण हर वर्ष लगभग ₹20,000 करोड़ ($3 बिलियन) की आर्थिक हानि होती है।
सरकारी संस्थानों पर प्रभाव:
नशीली दवाओं की तस्करी नेटवर्क भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं और सरकारी संस्थाओं को कमजोर करते हैं, जिससे राजनीतिक स्थिरता पर भी खतरा उत्पन्न होता है।
भारत में नशीली दवाओं की समस्या से निपटने के उपाय
माँग में कमी लाने की रणनीति:
नशीली दवाओं के उपयोग को रोकने के लिए जागरूकता अभियान, समुदाय आधारित निवारक पहल, और विद्यालयों में शैक्षिक कार्यक्रम लागू किए जाएँ।
उदाहरण: "नशा मुक्त भारत अभियान" का उद्देश्य युवाओं को नशीली दवाओं के खतरों के प्रति जागरूक करना है।
नशीली दवाओं की आपूर्ति पर निगरानी:
केवल छोटे तस्करों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, आपूर्ति श्रृंखला के मुख्य स्रोतों और निर्माताओं पर नजर रखी जाए।
उदाहरण: "ऑपरेशन ब्लैक कोबरा" के तहत गोल्डन क्रेसेंट (अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान) में नशीली दवाओं के केंद्रों को निशाना बनाया गया।
समन्वित खुफिया प्रणाली:
एजेंसियों के बीच सूचना साझा करने की प्रभावी प्रणाली विकसित करनी चाहिए, जिससे नशीली दवाओं की आपूर्ति श्रृंखला पर प्रभावी ढंग से नजर रखी जा सके।
उदाहरण: नवंबर 2024 में एनसीबी के "ऑपरेशन सागर मंथन" के तहत वैश्विक ड्रग सिंडिकेट "Lord of Drugs" का भंडाफोड़ किया गया।
नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) का सहयोग:
गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों की भागीदारी से परामर्श, जागरूकता अभियान और पुनर्वास को बढ़ावा दिया जा सकता है।
उदाहरण: "TARANG" जैसे NGO नशे की रोकथाम और पुनर्वास में कार्यरत हैं।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने के लिए बहुपक्षीय प्रयास आवश्यक हैं।
26 जून को "अंतरराष्ट्रीय नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ दिवस" मनाया जाता है। 2024 का विषय था— "The evidence is clear: Invest in Prevention", जो रोकथाम में निवेश की आवश्यकता पर जोर देता है।
निष्कर्ष
अवैध नशीली दवाओं की तस्करी व्यक्तियों और समाज को नुकसान पहुँचाती है और आने वाली पीढ़ी के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती है। इस समस्या से निपटने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि सभी नागरिकों, प्रवर्तन एजेंसियों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, गैर-सरकारी संगठनों और समुदायों की है।
समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए— रोकथाम, शिक्षा, उपचार, पुनर्वास, नीतिगत सुधार और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है। यदि भारत में इस चुनौती से प्रभावी रूप से निपटा जाए, तो "नशा मुक्त भारत" का सपना साकार हो सकता है।
UPSC मुख्य परीक्षा मॉडल प्रश्न
प्रश्न: भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग का संकट गहराता जा रहा है, विशेष रूप से युवाओं और संवेदनशील आबादी के बीच। इस समस्या को बढ़ाने में रासायनिक नशीली दवाओं को एक सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक (Status Symbol) मानने की प्रवृत्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
इस समस्या में योगदान देने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और नीतिगत कारकों की चर्चा कीजिए। साथ ही, इस संकट का समग्र समाधान सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी उपाय सुझाइए। (शब्द सीमा: 250)
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