यूथेनेशिया: गरिमामय विकल्प या नैतिक दुविधा?
- Ishrat Kashafi
- 7 मार्च
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हालिया संदर्भ
ब्रिटेन की संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) ने इंग्लैंड और वेल्स में इच्छामृत्यु (सहायक मृत्यु) को क़ानूनी मान्यता देने के लिए वोट किया है, जिससे असाध्य रोगियों को अपनी पीड़ा और परनिर्भरता से मुक्ति पाने का एक मानवीय विकल्प मिल सकेगा।
इच्छामृत्यु क्या है?
इच्छामृत्यु, जिसे दया मृत्यु भी कहते हैं, में किसी व्यक्ति की असहनीय पीड़ा को कम करने के लिए, विशेषकर गंभीर या असाध्य बीमारी के मामलों में, जानबूझकर जीवन समाप्त करना शामिल है।
इच्छामृत्यु के प्रकार
इच्छामृत्यु के विभिन्न प्रकार, अलग-अलग परिस्थितियों में नैतिक, क़ानूनी और प्रक्रियात्मक पहलुओं को समझने में मदद करते हैं।
क्रियाविधि के आधार पर
सक्रिय इच्छामृत्यु: इसमें किसी ख़ास तरीक़े से, जैसे घातक इंजेक्शन देकर, रोगी की मृत्यु का कारण बना जाता है। यह भारत समेत कई देशों में प्रतिबंधित है। भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु एक दंडनीय अपराध है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु: इसमें जीवन रक्षक उपचारों को बंद कर दिया जाता है (जैसे, वेंटिलेटर हटाना या दवाइयाँ बंद करना) और रोगी को प्राकृतिक रूप से मरने दिया जाता है। यह कई देशों में क़ानूनी है, लेकिन इसके लिए सख़्त नियमों का पालन ज़रूरी है।
सहमति के आधार पर
स्वैच्छिक इच्छामृत्यु: इसमें रोगी ख़ुद अपनी पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए अपनी मृत्यु का अनुरोध करता है या सहमति देता है। उदाहरण के लिए, एक असाध्य मरीज कानूनी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर इच्छामृत्यु की मांग कर सकता है।
गैर-स्वैच्छिक इच्छामृत्यु: जब रोगी सहमति देने में असमर्थ होता है (जैसे, कोमा या गंभीर मस्तिष्क क्षति के कारण), तो उसके परिवार के सदस्य या चिकित्सा विशेषज्ञ उसकी ओर से निर्णय लेते हैं। इसके लिए गहन नैतिक और क़ानूनी विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है।
अनैच्छिक इच्छामृत्यु: यह रोगी की इच्छा के बिना या उसकी जानकारी के बिना की जाती है। इसे आमतौर पर ज़्यादातर देशों में अनैतिक और ग़ैरक़ानूनी माना जाता है।
विश्व में वैधता
नीदरलैंड (स्वैच्छिक इच्छामृत्यु को क़ानूनी मान्यता देने वाला पहला देश), बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग और स्पेन जैसे कई देशों ने इच्छामृत्यु को वैध कर दिया है।
कनाडा में सहायक आत्महत्या और इच्छामृत्यु दोनों की अनुमति है, जबकि स्विट्ज़रलैंड केवल सहायक आत्महत्या की अनुमति देता है।
अमेरिका में कैलिफ़ोर्निया, वाशिंगटन और ओरेगन जैसे कुछ राज्यों में कड़े दिशानिर्देशों के तहत सहायक आत्महत्या की अनुमति है।
कोलंबिया में भी इच्छामृत्यु को मंज़ूरी मिल चुकी है।
भारत में वैधता
पी. रथिनम बनाम भारत संघ (1994): इस मामले में IPC की धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) को चुनौती दी गई और मरने के अधिकार पर बहस छिड़ी।
श्रीमती ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य (1996): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है, और गरिमा के साथ मरने और आत्महत्या में अंतर किया।
अरुणा शानबाग मामला (2011): न्यायालय ने कुछ ख़ास मामलों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी, और इसे सक्रिय इच्छामृत्यु से अलग बताया।
कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ (2018): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ मरने के अधिकार को मौलिक अधिकार माना। इसने असाध्य रोगियों को "जीवित इच्छा" के ज़रिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु चुनने की अनुमति दी, जिससे वे लाइलाज कोमा या असाध्य स्थिति में चिकित्सा देखभाल लेने से इनकार कर सकें।
इच्छामृत्यु के पक्ष में तर्क
रोगी की स्वतंत्रता का सम्मान: इच्छामृत्यु रोगी को अपना जीवन और मृत्यु चुनने की आज़ादी देकर उसकी स्वायत्तता का सम्मान करता है। लोगों को यह तय करने का अधिकार है कि वे कैसे जीना या मरना चाहते हैं, जिसमें यदि वे असाध्य रोग से पीड़ित हैं या असहनीय दर्द में हैं तो अपने कष्ट को समाप्त करने का विकल्प भी शामिल है।
गरिमा के साथ मरने का अधिकार: इच्छामृत्यु को गरिमा के साथ मरने के अधिकार का एक अहम हिस्सा माना जाता है। यह असाध्य रोगियों को लंबी पीड़ा और शारीरिक क्षरण से बचने का मौक़ा देता है।
दुख को कम करने का मानवीय तरीका: असाध्य बीमारी या अक्षम करने वाली स्थितियों में, इच्छामृत्यु रोगी के शारीरिक और मानसिक कष्ट को समाप्त करने का एक मानवीय उपाय है। यह चिकित्सा के मूल सिद्धांत "पीड़ा कम करना" का पालन करता है।
प्रियजनों के लिए दुख में कमी: लंबी बीमारी और पीड़ा न केवल रोगी के लिए, बल्कि उसके परिवार और दोस्तों के लिए भी भावनात्मक रूप से कष्टदायक होती है। सही तरीक़े से लागू की गई इच्छामृत्यु इस दुख को कम कर सकती है।
इच्छामृत्यु के विरुद्ध तर्क
नियंत्रण में कठिनाई, दुरुपयोग की आशंका: इच्छामृत्यु से जुड़ी एक बड़ी चिंता है, इसके लिए प्रभावी नियम बनाना और उनका पालन करवाना। एक बार मंज़ूर होने के बाद, इच्छामृत्यु का दुरुपयोग होने का ख़तरा रहता है। ऐसे दुरुपयोग को रोकने के लिए सख़्त नियंत्रण सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। बुजुर्ग, विकलांग या मानसिक रूप से बीमार जैसे कमज़ोर लोगों को समय से पहले अपनी जान लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
नैतिक और धार्मिक रूप से अस्वीकार्य: कई धार्मिक और नैतिक मान्यताओं के अनुसार, जीवन पवित्र है और केवल ईश्वर को ही इसे समाप्त करने का अधिकार है। इच्छामृत्यु को ईश्वरीय इच्छा में हस्तक्षेप या प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन माना जाता है। ऐसे समाज जहां धार्मिक मान्यताएं गहरी हैं, वहाँ इच्छामृत्यु को अक्सर अनैतिक और जीवन की पवित्रता के ख़िलाफ़ माना जाता है।
अपराधबोध और भावनात्मक दबाव: जिन समाजों में इच्छामृत्यु आम है, वहाँ रोगी दूसरों की "मदद" करने के लिए इसे चुनने के लिए बाध्य महसूस कर सकते हैं। अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं इन भावनाओं को और बढ़ा सकती हैं, जिससे उनकी सही निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसे रोकने के लिए, परामर्श और सख़्त निगरानी जैसे सुरक्षा उपाय ज़रूरी हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इच्छामृत्यु का निर्णय बिना किसी भावनात्मक दबाव के लिया गया है।
सुधार की दिशा
मज़बूत क़ानूनी ढांचा: इच्छामृत्यु को क़ानूनी मान्यता देने के लिए, दुरुपयोग से बचाने के लिए सख़्त नियम और उपाय होने चाहिए। पात्रता, सहमति प्रक्रिया और निगरानी प्रणाली को स्पष्ट और विस्तृत दिशानिर्देशों में परिभाषित किया जाना चाहिए।
उपशामक देखभाल को बढ़ावा: उपशामक देखभाल के बुनियादी ढांचे को मज़बूत करके और इसे सभी के लिए सुलभ बनाकर, असाध्य रोगियों को अपने दर्द और पीड़ा से निपटने के लिए ज़्यादा विकल्प मिलेंगे, जिससे इच्छामृत्यु की ज़रूरत कम होगी।
नैतिक परामर्श और निरीक्षण: यह सुनिश्चित करने के लिए कि इच्छामृत्यु का निर्णय स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के लिया गया है, इच्छामृत्यु के अनुरोधों की निष्पक्ष नैतिक समितियों द्वारा निगरानी की जानी चाहिए। रोगियों और उनके परिवारों को परामर्श भी दिया जाना चाहिए।
सांस्कृतिक संवेदनशीलता और समावेश: इच्छामृत्यु से जुड़ी नीतियाँ व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करते हुए, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का भी ध्यान रखें। चिकित्सा, क़ानूनी और सामुदायिक पक्षों का आपसी सहयोग ज़रूरी है।
इच्छामृत्यु एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसमें सामाजिक और नैतिक चिंताओं के साथ-साथ करुणा का भी ध्यान रखना ज़रूरी है। व्यक्तिगत गरिमा और सामाजिक नैतिकता को कमज़ोर किए बिना इच्छामृत्यु को एक मानवीय विकल्प बनाने के लिए, एक जटिल, समावेशी और सुव्यवस्थित ढांचे की आवश्यकता है।
UPSC मुख्य परीक्षा मॉडल प्रश्न
प्रश्न: इच्छामृत्यु (Euthanasia) नैतिक, कानूनी और सामाजिक पहलुओं का जटिल संयोजन है, विशेष रूप से व्यक्तिगत गरिमा सुनिश्चित करने और इसके दुरुपयोग को रोकने के संदर्भ में। इच्छामृत्यु के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करें, जिसमें इसके प्रकार, कानूनी स्थिति, और इसके पक्ष एवं विपक्ष में दिए जाने वाले तर्क शामिल हों। भारत में इसकी क्रियान्वयन से जुड़े चुनौतियों को संबोधित करने के लिए उपाय सुझाएं। (शब्द सीमा: 250)
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