POCSO अधिनियम 2012 : बाल शोषण के विरुद्ध एक प्रभावी कानून
- Ishrat Kashafi
- 5 मार्च
- 8 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 6 मार्च
वर्तमान संदर्भ
मार्च 2024 में, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के खिलाफ एक 17 वर्षीय पीड़िता की मां द्वारा पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन दुराचार का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया गया। इस संदर्भ में, सीआईडी ने पीड़िता के बयान को जांच का एक महत्वपूर्ण तत्व बताया और कानून के कड़े अनुपालन की आवश्यकता पर जोर दिया।
यह मामला बाल संरक्षण और सार्वजनिक जवाबदेही से जुड़ी गंभीर चिंताओं को उजागर करता है, जिससे नाबालिगों के संरक्षण हेतु बनाए गए पॉक्सो अधिनियम जैसे कानूनों के सख्त प्रवर्तन पर बहस फिर से तेज हो गई है, ताकि किसी भी आरोपी के पद या प्रभाव की परवाह किए बिना बच्चों को शोषण से बचाया जा सके।
पॉक्सो अधिनियम, 2012
पॉक्सो अधिनियम, 2012 का पूरा नाम "बाल यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम" (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) है। यह भारत का पहला व्यापक और लैंगिक-निष्पक्ष (Gender-neutral) कानून है, जिसका उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और बाल अश्लीलता (Pornography) से बचाना है। यह अधिनियम अपराध की रिपोर्टिंग, साक्ष्य दर्ज करने, जांच करने और ऐसे मामलों के त्वरित निपटारे के लिए बाल-मित्र (Child-friendly) तंत्र प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य 18 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों के अधिकारों और कल्याण की सुरक्षा करना है। यह अपराध की गंभीरता के आधार पर सख्त दंड का प्रावधान करता है, ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके।
पॉक्सो अधिनियम के क्रियान्वयन को सुदृढ़ बनाना
2019 में, इस अधिनियम में संशोधन कर कठोर दंडों का प्रावधान किया गया, जिसमें बच्चों के खिलाफ सबसे जघन्य यौन अपराधों के लिए मृत्यु दंड (Death Penalty) शामिल किया गया, ताकि अपराधियों को कड़ी सजा देकर नाबालिगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भारत सरकार ने पॉक्सो नियम, 2020 (POCSO Rules, 2020) लागू किए। यह अधिनियम लैंगिक-निष्पक्ष होने के साथ-साथ बाल-मित्र प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करता है, जिससे अपराधों की रिपोर्टिंग, साक्ष्य एकत्र करने, जांच करने और त्वरित न्यायिक प्रक्रिया में सहायता मिलती है। इसका प्रमुख उद्देश्य 18 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा की गारंटी देना है।
पॉक्सो अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ

1. बालक की परिभाषा: पॉक्सो अधिनियम सभी नाबालिगों को, उनके लिंग की परवाह किए बिना, सुरक्षा प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत, 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बालक (Child) माना जाता है।
2. यौन अपराधों का व्यापक दायरा: यह अधिनियम बाल अश्लीलता (Child Pornography), यौन उत्पीड़न (Sexual Assault), यौन उत्पीड़न (Harassment) और शोषण (Exploitation) सहित विभिन्न प्रकार के यौन अपराधों को सम्मिलित करता है।
3. लैंगिक-निष्पक्ष कानून: यह अधिनियम सभी बच्चों को, उनके लिंग की परवाह किए बिना, यौन शोषण और दुरुपयोग से समान सुरक्षा प्रदान करता है।
4. अपराध की रिपोर्ट न करना दंडनीय: यदि किसी संस्था का जिम्मेदार व्यक्ति (बच्चों को छोड़कर) अपने अधीनस्थ द्वारा किए गए यौन अपराध की रिपोर्ट नहीं करता, तो उसे अपराध माना जाएगा और उसके लिए सजा का प्रावधान है।
5. शिकायत दर्ज कराने की कोई समय-सीमा नहीं: बाल यौन शोषण से पीड़ित व्यक्ति कभी भी, चाहे अपराध हुए कितना भी समय बीत गया हो, शिकायत दर्ज करा सकता है।
6. बालक-मित्र प्रक्रियाएँ: यह अधिनियम रिपोर्टिंग, साक्ष्य एकत्र करने और जांच की प्रक्रिया को बाल-मित्र (Child-Friendly) बनाने पर बल देता है, ताकि अदालत की कार्यवाही के दौरान पीड़ितों को सुरक्षित और सहयोगी वातावरण मिल सके।
7. अपराध की गंभीरता के अनुसार दंड: अधिनियम में अपराध की गंभीरता के अनुसार विभिन्न प्रकार की सजा निर्धारित की गई है, जिसमें आजीवन कारावास (Life Imprisonment) और सबसे गंभीर मामलों में मृत्यु दंड (Death Penalty) का प्रावधान है।
8. 2019 का संशोधन: अपराधियों को कड़ी सजा देने और उन्हें हतोत्साहित करने के उद्देश्य से 2019 में संशोधन किया गया, जिसमें गंभीर यौन अपराधों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान किया गया।
9. पॉक्सो नियम, 2020: भारत सरकार ने 2020 में पॉक्सो नियम लागू किए, जिससे इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को मजबूत किया जा सके। इन नियमों में सख्त दिशा-निर्देश और विस्तृत प्रोटोकॉल शामिल किए गए हैं।
10. पीड़ित की गोपनीयता की सुरक्षा: अधिनियम पीड़ित की पहचान की रक्षा करता है और बिना विशेष न्यायालय की अनुमति के इसे किसी भी माध्यम में प्रकाशित करने पर रोक लगाता है।
11. त्वरित न्याय प्रक्रिया: यह अधिनियम यौन अपराधों के पीड़ितों को समय पर न्याय प्रदान करने के लिए फास्ट-ट्रैक (Fast-Track) न्यायिक प्रक्रिया को प्राथमिकता देता है।
12. बाल संरक्षण पर विशेष ध्यान: बच्चों के अधिकारों और उनके कल्याण की रक्षा करना, तथा यौन शोषण और दुरुपयोग को रोकना इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है।
POCSO अधिनियम की प्रभावशीलता
भारत में बाल यौन शोषण को रोकने में POCSO अधिनियम प्रभावी साबित हुआ है, हालांकि कई चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं।
बढ़ती जागरूकता और रिपोर्टिंग:
POCSO अधिनियम ने बाल यौन शोषण के प्रति जागरूकता बढ़ाई है और अपराधों की रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित किया है। कई राज्यों में विशेष POCSO न्यायालयों की स्थापना से मामलों के त्वरित निपटारे और दोषसिद्धि दर में वृद्धि हुई है।
हालिया आंकड़े:
2021: देशभर में कुल 53,874 POCSO मामले दर्ज किए गए।
2022: मामलों की संख्या बढ़कर 55,000 हो गई, जिनमें उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक घटनाएँ दर्ज हुईं।
2023: NCRB ने 60,000 से अधिक POCSO मामले दर्ज किए, जिससे यह प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती हुई दिखी।
2024: अब तक भारत के 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 750 फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSCs) स्थापित किए जा चुके हैं, जिनमें 408 विशेष POCSO न्यायालय शामिल हैं। इन अदालतों ने अब तक 2,87,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया है।
बाल-अनुकूल प्रक्रियाएँ: POCSO अधिनियम में बाल-अनुकूल रिपोर्टिंग और जाँच प्रक्रियाएँ अनिवार्य की गई हैं। विशेष POCSO न्यायालयों को बच्चों के लिए एक सुरक्षित स्थान के रूप में डिजाइन किया गया है, जिससे वे भयमुक्त होकर गवाही दे सकें।
उदाहरण के लिए, कर्नाटक POCSO न्यायालय मामलों की अधिक संवेदनशीलता से सुनवाई करने में मदद कर रहा है, क्योंकि पारंपरिक अदालतों में बच्चे अक्सर गवाही के दौरान मानसिक आघात का सामना करते हैं।
POCSO न्यायालयों की कार्यप्रणाली: मई 2024 तक, विशेष POCSO न्यायालयों ने 1,80,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया है, जिससे पीड़ित बच्चों को शीघ्र न्याय मिलने में सहायता मिली है।
फास्ट-ट्रैक न्याय प्रक्रिया: दिल्ली में 700 से अधिक POCSO मामले एक वर्ष के भीतर फास्ट-ट्रैक प्रणाली के तहत निपटाए गए, जिससे त्वरित सुनवाई सुनिश्चित हुई।
पीड़ित की गोपनीयता का संरक्षण: POCSO अधिनियम पीड़ित की पहचान को गोपनीय रखता है और उसकी जानकारी को प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाता है, जिससे बच्चों की गरिमा और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।
POCSO अधिनियम के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ
1. कम दोषसिद्धि दर और जांच में खामियाँ
POCSO अधिनियम के तहत दोषसिद्धि दर मात्र 14% है, जो जाँच और अभियोजन प्रणाली में गंभीर खामियों को दर्शाता है।
सबूतों का उचित संग्रह नहीं होना
अपराध स्थल को सुरक्षित न रखना
फोटो और वीडियो साक्ष्यों की कमी
उदाहरण: शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2018) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपराध स्थल की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य की थी, लेकिन इसका पालन प्रभावी रूप से नहीं हो पा रहा है।
2. न्याय में देरी और कानूनी प्रक्रियाओं की अक्षमता
हालांकि अधिनियम के तहत एक माह के भीतर जांच पूरी करने का प्रावधान है, लेकिन सीमित संसाधन, फॉरेंसिक बैकलॉग और जटिल प्रक्रियाओं के कारण न्याय में देरी होती है।
एक POCSO मामले के निपटारे में औसतन 1 वर्ष और 5 महीने लगते हैं।
3. कम रिपोर्टिंग और सामाजिक कलंक
बाल यौन शोषण के कई मामले समाज में बदनामी के डर, प्रतिशोध की आशंका, या जागरूकता की कमी के कारण दर्ज नहीं हो पाते।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक अध्ययन रिपोर्ट में यह समस्या उजागर की गई है।
4. अपर्याप्त संसाधन और बुनियादी ढाँचे की कमी
कई राज्यों में विशेष POCSO अदालतों और प्रशिक्षित अभियोजकों की कमी देखी गई है।
महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या मात्र 10% है, जिससे पीड़ितों के बयान लेने और बाल-अनुकूल तरीकों के पालन में बाधा आती है।
5. गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा में कमी
गवाहों को धमकाने, पीड़ितों पर दबाव डालने और सुरक्षा उपायों की कमी से मामलों के परिणाम प्रभावित होते हैं।
6. आयु निर्धारण में समस्याएँ
बालकों की आयु निर्धारण की स्पष्ट विधि POCSO अधिनियम में नहीं है।
वर्तमान में स्कूल रिकॉर्ड पर निर्भरता होती है, जो हमेशा सटीक नहीं होते।
7. डिजिटल अपराधों में वृद्धि
सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म्स पर बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM) के प्रसार से मामलों में वृद्धि हो रही है।
साइबर अपराध इकाइयों और टेक कंपनियों के साथ सहयोग की आवश्यकता है।
8. जन-जागरूकता और रोकथाम उपायों की कमी
यौन शिक्षा की कमी और POCSO अधिनियम के प्रति कम जागरूकता से बच्चों का शोषण जारी है।
9. पुनर्वास और समर्थन सेवाओं की सीमाएँ
मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और पुनर्वास सेवाओं की कमी से बाल यौन शोषण के शिकार बच्चों को समुचित सहायता नहीं मिल पाती।
POCSO अधिनियम के कार्यान्वयन को सुदृढ़ करने हेतु मार्ग
अनुसंधान तंत्र को सुदृढ़ बनाना
कानून प्रवर्तन अधिकारियों के लिए उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना, जिससे साक्ष्य संकलन, अपराध स्थल संरक्षण एवं अनिवार्य ऑडियो-वीडियो साक्षात्कार प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जा सके।
शाफ़ी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2018) में उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित दिशानिर्देशों के अनुरूप अनुसंधान सुनिश्चित करना।
अनुसंधान संबंधी शिथिलता एवं आरोप-पत्र (चार्जशीट) दायर करने में होने वाली देरी को रोकने हेतु उत्तरदायित्व-निर्धारण व्यवस्था को सुदृढ़ करना।
न्यायिक प्रक्रियाओं में त्वरित गति लाना
विशिष्ट POCSO न्यायालयों एवं त्वरित न्यायालयों (Fast-Track Courts) की संख्या में वृद्धि कर लंबित वादों को न्यूनतम करना।
डिजिटल वाद-प्रबंधन प्रणाली (Digital Case Management System) जैसी तकनीकों का प्रयोग कर न्यायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
निर्धारित प्रक्रिया-समयसीमा का कठोरता से अनुपालन कर पीड़ितों को शीघ्र न्याय उपलब्ध कराना।
पीड़ित-केंद्रित न्याय प्रणाली को प्रोत्साहन देना
पीड़ित एवं साक्षियों की सुरक्षा के लिए व्यापक संरक्षण कार्यक्रम विकसित करना।
परामर्श (Counseling) एवं मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने हेतु मनोवैज्ञानिक परामर्श सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
न्यायाधीशों, लोक अभियोजकों एवं पुलिस अधिकारियों के लिए आघात-संवेदनशील (Trauma-Informed) प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना, जिससे वे पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाएं।
सामाजिक जागरूकता एवं निवारक उपायों को बढ़ावा देना
विद्यालयों में समावेशी लैंगिक शिक्षा (Comprehensive Sexuality Education - CSE) को पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाना, जिससे बालकों को यौन शोषण की पहचान करने एवं रिपोर्ट करने हेतु सक्षम बनाया जा सके।
POCSO अधिनियम के विषय में राष्ट्रीय स्तर पर जन-जागरूकता अभियान संचालित करना, विशेष रूप से ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में।
गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) एवं सामुदायिक संगठनों के साथ सहयोग कर बाल संरक्षण उपायों को सशक्त बनाना।
सुविधा-संसाधनों में सुधार
पुलिस विभाग में महिला अधिकारियों की संख्या में वृद्धि कर यह सुनिश्चित करना कि पीड़ितों के बयान महिला उप-निरीक्षकों (Sub-Inspectors) द्वारा दर्ज किए जाएं।
फोरेंसिक प्रयोगशालाओं के लिए पर्याप्त वित्तीय एवं मानव संसाधन उपलब्ध कराना, जिससे साक्ष्य परीक्षण की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके।
पुलिस थानों एवं न्यायालय परिसरों में बाल-अनुकूल (Child-Friendly) वातावरण तैयार करना, जिससे पीड़ित बिना किसी भय या दबाव के अपने बयान दर्ज करा सकें।
डिजिटल माध्यमों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान
साइबर अपराध नियंत्रण के लिए विशिष्ट प्रकोष्ठ (Cyber Crime Units) स्थापित करना, जो बाल यौन शोषण सामग्री (Child Sexual Abuse Material - CSAM) के प्रसार को रोक सकें।
प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी कर यौन उत्पीड़न संबंधी सामग्री को डिजिटल प्लेटफार्मों से हटाने की प्रभावी व्यवस्था लागू करना।
ऐसे अपराधों में संलिप्त व्यक्तियों हेतु कठोर दंड प्रावधान लागू करना, जिससे डिजिटल प्लेटफार्मों पर बाल यौन शोषण की घटनाओं को रोका जा सके।
कानूनी प्रावधानों को अधिक स्पष्ट एवं प्रभावी बनाना
POCSO अधिनियम को संशोधित कर पीड़ित की आयु निर्धारण को किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) के अनुरूप लाना।
न्यायिक प्रक्रिया को सरल एवं स्पष्ट बनाना ताकि न्यायिक मजिस्ट्रेट सक्रिय रूप से वाद-प्रक्रिया में सम्मिलित रहें एवं साक्ष्यों को निरस्त होने से बचाया जा सके।
डेटा पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना
POCSO अधिनियम के कार्यान्वयन पर वार्षिक प्रतिवेदन (Annual Reports) प्रकाशित करना, जिसमें जांच, दोषसिद्धि एवं मामलों के निपटान की सांख्यिकीय जानकारी शामिल हो।
POCSO न्यायालयों एवं पुलिस विभाग के कार्यों की नियमित ऑडिट प्रक्रिया लागू करना, जिससे अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन की समीक्षा की जा सके।
सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना
नागरिक समाज, शिक्षकों, सामुदायिक एवं धार्मिक नेताओं को बाल अधिकारों की रक्षा हेतु जागरूक बनाना, जिससे बाल यौन शोषण के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाया जा सके।
माता-पिता एवं अभिभावकों को प्रेरित करना कि वे अपने बच्चों के साथ संवाद स्थापित करें एवं ऐसा विश्वास-युक्त वातावरण तैयार करें जिससे बच्चे बिना किसी भय के यौन शोषण की घटनाओं की रिपोर्ट कर सकें।
निष्कर्ष
POCSO अधिनियम की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करने के लिए बहु-हितधारक (Multi-Stakeholder) दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यदि उपरोक्त चुनौतियों का समाधान किया जाए एवं संस्थागत कमियों को दूर किया जाए, तो यह अधिनियम बाल संरक्षण सुनिश्चित करने में अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकता है। इससे न केवल अपराधियों को कठोर दंड मिलेगा, बल्कि पीड़ितों को न्याय एवं पुनर्वास सहायता भी समय पर उपलब्ध होगी।
टिप्पणियां