एक राष्ट्र, एक चुनाव: संघीय ढांचे के लिए चुनौती?
- Ishrat Kashafi
- 15 मार्च
- 6 मिनट पठन
वर्तमान संदर्भ
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" (ONOE) प्रस्ताव, जिसे सरकार ने पुनर्जीवित किया है, लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को समकालिक रूप से कराने का प्रयास करता है ताकि प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाया जा सके। हालांकि, संदेहियों का मानना है कि इससे सत्ता का केंद्रीकरण हो सकता है, संघवाद कमजोर हो सकता है और अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के दुरुपयोग को बल मिल सकता है, जिससे भारतीय लोकतंत्र की अखंडता पर प्रश्न उठ सकते हैं।
एक राष्ट्र, एक चुनाव की संकल्पना
"वन नेशन, वन इलेक्शन" का उद्देश्य लोकसभा (संसद) और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। यह वर्तमान प्रणाली को बदल देगा, जिसमें राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के चुनाव अलग-अलग समय पर कराए जाते हैं। ONOE को लागू करने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि इससे चुनावी खर्च कम होगा, प्रशासनिक दक्षता में सुधार होगा और चुनावों से संबंधित व्यवधानों को कम किया जा सकेगा। हालांकि, यह विचार कई चिंताओं को जन्म देता है, जैसे कि इसके संभावित प्रभाव लोकतांत्रिक मानदंडों पर, राज्यों की स्वायत्तता पर और भारतीय संघवाद पर।
भारतीय संघवाद की परिभाषा
संघवाद एक शासन प्रणाली है, जिसमें शक्ति का विभाजन केंद्र सरकार और उसकी अधीनस्थ इकाइयों के बीच किया जाता है। भारत में संघीय प्रणाली राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बीच सत्ता के विभाजन को परिभाषित करती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के संघवाद से भारत के संघवाद की तुलना करें तो भारत में संघवाद इस प्रकार से संरचित है कि यह राज्य की स्वायत्तता और एक शक्तिशाली केंद्र सरकार के बीच संतुलन बनाए रखे, ताकि देश की बहु-सांस्कृतिक और विविध सामाजिक-राजनीतिक संरचना को सुचारु रूप से संचालित किया जा सके।
संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संघवाद के बीच अंतर
पहलू | भारतीय संघवाद | अमेरिकी संघवाद |
संघीय स्वरूप | अर्ध-संघीय (केंद्र और राज्यों में मिश्रित शक्तियाँ) | पूर्ण संघीय (राज्य और संघ सरकार की स्पष्ट शक्तियाँ) |
संविधान का आधार | एकल लिखित संविधान, जो सर्वोच्च है | एकल लिखित संविधान, जो सर्वोच्च है |
शक्तियों का विभाजन | केंद्र सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची | संघ और राज्य सरकार के बीच शक्तियाँ विभाजित |
शेष शक्तियाँ | केंद्र सरकार के पास | राज्यों के पास |
संशोधन प्रक्रिया | कुछ प्रावधानों को राज्यों की मंजूरी आवश्यक, अन्य केवल संसद द्वारा | अधिकांश संशोधन राज्यों की तीन-चौथाई मंजूरी से |
न्यायिक अधिकार | एकीकृत न्यायपालिका, सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च संस्था | द्वैत न्यायपालिका, संघीय और राज्य स्तरीय न्यायालय |
राज्य की स्वायत्तता | सीमित, केंद्र सरकार विशेष परिस्थितियों में हस्तक्षेप कर सकती है | अधिक स्वायत्तता, संघीय सरकार राज्यों पर नियंत्रण नहीं कर सकती |
विधायी प्रतिनिधित्व | राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के आधार पर | सीनेट में प्रत्येक राज्य का समान प्रतिनिधित्व |
आपातकालीन प्रावधान | केंद्र सरकार आपात स्थिति में राज्यों की सत्ता ग्रहण कर सकती है | संघीय सरकार को राज्यों की सत्ता लेने का कोई अधिकार नहीं |
सांस्कृतिक विविधता | भाषाई, धार्मिक, सांस्कृतिक विविधता का समावेश | सांस्कृतिक विविधता का सीमित प्रभाव |
शासन का स्वरूप | अधिक केंद्रीकृत, विशेष रूप से संकट के समय | विकेंद्रीकृत, संघीय और राज्य सरकारों की अलग-अलग शक्तियाँ |
संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ
संविधान की सर्वोच्चता: संघवाद एक लिखित संविधान द्वारा शासित होता है, जो सरकार के दो स्तरों (केंद्र और राज्य) के कर्तव्यों और अधिकारों को परिभाषित करता है। यह व्यवस्था शक्ति के अधिक केंद्रीकरण को रोकने के लिए 'जांच और संतुलन' की प्रणाली लागू करती है। भारत और अमेरिका में, संविधान सर्वोच्च कानून है, और कोई भी विधि जो इसके विरुद्ध जाती है, उसे असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है (संविधान का संरक्षक सर्वोच्च न्यायालय होता है)। इसके विपरीत, यूनाइटेड किंगडम में संसद सर्वोच्च होती है।
केंद्र और राज्य के बीच शक्तियों का विभाजन: संघीय प्रणाली में केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट रूप से शक्तियों का विभाजन होता है, जिससे प्रत्येक स्तर को अपने विशिष्ट कार्य सौंपे जाते हैं। भारत में संविधान, सरकार के विभिन्न स्तरों में संतुलन बनाए रखने के लिए शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित करता है:
संघ सूची : रक्षा, विदेश नीति, संचार
राज्य सूची : पुलिस, लोक स्वास्थ्य
समवर्ती सूची : शिक्षा, विवाह कानून, वन कानून
स्वतंत्र न्यायपालिका: संघीय संरचना के सुचारू संचालन के लिए एक निष्पक्ष न्यायपालिका आवश्यक होती है, जो संविधान की व्याख्या करने और केंद्र व राज्यों के बीच उत्पन्न विवादों को सुलझाने का कार्य करती है। भारत में, सर्वोच्च न्यायालय संघवाद का संरक्षक है और राज्यों के बीच जल संसाधनों के वितरण जैसे विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
द्विसदनीय विधायिका : संघवाद में आमतौर पर द्विसदनीय विधायिका होती है, जिसमें एक सदन जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है और दूसरा राज्यों का।
अमेरिका में: कांग्रेस दो सदनों में विभाजित है—हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (जनप्रतिनिधि) और सीनेट (राज्यों का प्रतिनिधित्व)।
भारत में: लोकसभा नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।
लचीलापन : संघवाद शक्ति-साझाकरण की व्यवस्थाओं में लचीलापन प्रदान करता है, जिससे समय और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कनाडा की संघीय प्रणाली इतनी लचीली है कि यह प्रांतों को स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में अधिकार देती है, जिससे स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार नीतियाँ बनाई जा सकें।
क्या भारत एक वास्तविक संघीय राज्य है?
भारत की शासन प्रणाली को अक्सर "अर्ध-संघीय" (Quasi-Federal) कहा जाता है। यह शब्द के.सी. व्हेयर (K.C. Wheare) द्वारा गढ़ा गया था, जो ऐसी प्रणाली को परिभाषित करता है, जिसमें संघीय और एकात्मक (unitary) दोनों विशेषताएँ सम्मिलित होती हैं।
भारतीय संविधान अनुच्छेद 246 और सातवीं अनुसूची (Schedule VII) के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन करता है, जिससे संघीय ढाँचा सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन, कुछ प्रावधान ऐसे भी हैं जो केंद्र सरकार को विशेष परिस्थितियों में अतिरिक्त शक्तियाँ प्रदान करते हैं, जिससे इसमें एकात्मक विशेषताएँ भी दिखाई देती हैं।
यह संघीय और एकात्मक तत्वों का मिश्रण भारत को एक अधिक लचीली और गतिशील शासन प्रणाली प्रदान करता है, जो समय के अनुसार परिस्थितियों के अनुकूल ढल सकती है।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संविधान की इस लचीलापन को रेखांकित करते हुए कहा था कि यह परिस्थितियों और समय की माँग के अनुसार कभी संघीय तो कभी एकात्मक रूप में कार्य करेगा।
इस प्रकार, भारत पूर्ण रूप से संघीय न होकर एक अर्ध-संघीय व्यवस्था का अनुसरण करता है, जो केंद्र को अधिक शक्तियाँ प्रदान करता है, विशेष रूप से आपातकाल की स्थिति में।
कैसे "एक राष्ट्र, एक चुनाव" (ONOE) भारत की संघीय संरचना को चुनौती देता है?
संशयवादी मानते हैं कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" प्रस्ताव, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने का प्रयास करता है, प्रशासनिक जटिलताओं और लागत को कम करने के बावजूद, भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत संघीय ढांचे के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। सरकारिया आयोग (1988) ने यह स्पष्ट किया था कि अत्यधिक केंद्रीकरण सहकारी संघवाद की भावना को कमजोर कर सकता है।
राज्य स्वायत्तता का ह्रास
भारत का संघीय ढांचा केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन पर आधारित है, जिसमें राज्य सरकारों को अपने स्थानीय मुद्दों को हल करने और स्वतंत्र रूप से शासन करने की स्वायत्तता प्राप्त है। ONOE इस स्वायत्तता को कमजोर करने का जोखिम उठाता है क्योंकि चुनावी प्रक्रिया के केंद्रीकरण से राज्यों और केंद्र के अलग-अलग जनादेश प्रभावित हो सकते हैं। इसके कारण राज्य सरकारों की स्वतंत्र रूप से नीति निर्माण और कार्यान्वयन करने की क्षमता कम हो सकती है।
राष्ट्रीय मुद्दों का स्थानीय मुद्दों पर हावी होना
एक साथ चुनाव होने की स्थिति में राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय और स्थानीय चिंताओं को पीछे छोड़ सकते हैं।आमतौर पर, राज्य चुनावों में स्थानीय शासन से जुड़े मुद्दे अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन ONOE के कारण राष्ट्रीय नैरेटिव प्राथमिकता बन सकता है। इसके चलते मतदाता राज्य सरकारों की प्रदर्शन-आधारित जवाबदेही से ध्यान हटा सकते हैं, जिससे स्थानीय शासन का महत्व कम हो जाएगा।
क्षेत्रीय दलों पर प्रभाव
भारत की राजनीतिक विविधता में क्षेत्रीय दलों की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो विभिन्न राज्यों की विशिष्ट आकांक्षाओं और मुद्दों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ONOE प्रस्ताव से राष्ट्रीय दलों को फायदा हो सकता है, क्योंकि उनके पास अधिक संसाधन और प्रचार नेटवर्क होते हैं। इससे क्षेत्रीय दलों का हाशिए पर जाना संभव है, जिससे राजनीतिक शक्ति संतुलन केंद्र के पक्ष में झुक सकता है।
संवैधानिक चुनौतियाँ
ONOE लागू करने के लिए राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल भंग करना पड़ सकता है, जो संवैधानिक अतिक्रमण के रूप में देखा जा सकता है और सहकारी संघवाद के सिद्धांत के विरुद्ध हो सकता है। इसके अतिरिक्त, विविधता से भरे राष्ट्र में चुनावी चक्रों को समन्वित करना, अतिरिक्त ईवीएम (EVMs) और वीवीपैट (VVPATs) की व्यवस्था करना जैसी व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी सामने आएंगी।
केंद्रीकृत राजनीति का खतरा
ONOE प्रस्ताव से भारत की राजनीतिक प्रणाली को अधिक केंद्रीकृत बनाने का खतरा है, जिससे यह अर्ध-संसदीय प्रणाली से अधिक राष्ट्रपति प्रणाली की ओर झुक सकती है। यह संघीय शक्ति-साझाकरण के सिद्धांत के विरुद्ध होगा, जिसमें राज्य बराबर भागीदार होते हैं। यदि राष्ट्रीय दलों का दबदबा बढ़ता है, तो केंद्र सरकार की नीतियाँ राज्यों की नीतिगत स्वतंत्रता को सीमित कर सकती हैं।
लोकतांत्रिक विविधता का क्षरण
भारत की संघीय संरचना इसकी सांस्कृतिक, भाषाई और राजनीतिक विविधता को दर्शाती है। एक राष्ट्र, एक चुनाव के तहत एकसमान चुनावी चक्र लागू करना इस विविधता की अनदेखी कर सकता है, जिससे लोकतांत्रिक बहुलवाद कमजोर होगा।चुनावों पर आने वाली लागत को कम करने की दलील इस बड़े लोकतांत्रिक सिद्धांत को नजरअंदाज करती है कि बार-बार चुनाव होना लोकतंत्र की आधारशिला है, जो राज्यों की विशिष्ट पहचान और आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करता है।
निष्कर्ष
'एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE)' का कार्यान्वयन चुनावी दक्षता बढ़ाने और भारत की संघीय संरचना को बनाए रखने के बीच एक संतुलन स्थापित करने का प्रयास होना चाहिए। ONOE लोकतंत्र को सशक्त बना सकता है, बशर्ते कि इसे व्यापक विचार-विमर्श, चरणबद्ध कार्यान्वयन, और मजबूत संवैधानिक सुरक्षा उपायों के साथ लागू किया जाए।
सहकारी संघवाद को बनाए रखना न केवल भारत की 'अनेकता में एकता' की भावना को सशक्त करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि देश के सभी नागरिकों की लोकतांत्रिक आकांक्षाएं पूर्ण रूप से पूरी हो सकें।
यूपीएससी मेन्स मॉडल प्रश्न
प्रश्न: 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' (ONOE) लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक समकालिक चुनावी चक्र की परिकल्पना करता है। भारत की संघीय संरचना के संदर्भ में, ONOE को अपनाने के संभावित लाभों और चुनौतियों की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिए। (250 शब्द)
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