ए1 vs ए2 दूध : स्वास्थ्य के लिए कौन बेहतर?
- Dr. Syed Mudasir Shah
- 4 मार्च
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परिचय
दूध को प्रकृति का आदर्श आहार माना जाता है। हालांकि, भारतीयों के लिए दूध केवल आहार और पोषण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य से भी जुड़ा हुआ है। भारत में शायद ही कोई घर ऐसा होगा जहाँ दिन की शुरुआत दूध के बिना होती हो। भारत को "दूध की भूमि" कहा जा सकता है, जहाँ वर्ष 2023-24 में दूध का उत्पादन 239.30 मिलियन टन तक पहुँच गया, जो पिछले दशक में 5.62% की वृद्धि दर दर्शाता है। भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 471 ग्राम/दिन दर्ज की गई है (BAHS, 2024 के अनुसार)।
दूध मानव पोषण और विकास में जीवन भर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें विभिन्न पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, वसा, शर्करा, खनिज और विटामिन मौजूद होते हैं। यह ऑस्टियोपोरोसिस, कोलन कैंसर को रोकने और वजन घटाने में सहायक होने के कारण अधिकांश लोगों की पसंद बना हुआ है। वर्तमान में, डेयरी गायें वैश्विक स्तर पर दूध का प्राथमिक स्रोत हैं। दूध मुख्य रूप से दो प्रकार के प्रोटीन, यानी केसिन और व्हे प्रोटीन से बना होता है। केसिन कुल प्रोटीन सामग्री का 80% भाग होता है और इसे आगे αs1-, αs2-, β-, और κ-केसिन परिवारों में विभाजित किया जाता है। इनमें से, β-केसिन दूसरा सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला प्रोटीन है।
β-केसिन में हुए उत्परिवर्तन (mutation) के कारण इसके 13 आनुवंशिक प्रकार विकसित हुए हैं, जिनमें ए1 और ए2 प्रमुख हैं। इसी आधार पर दूध को ए1 और ए2 दूध के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। कुछ अध्ययनों में यह सुझाव दिया गया है कि ए2 दूध, ए1 दूध की तुलना में अधिक सुरक्षित है। हाल के वर्षों में, वैज्ञानिकों ने ए1/ए2 प्रकारों में रुचि दिखाई है, क्योंकि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ए1 β-केसिन की अधिक मात्रा के सेवन से कई मानव रोगों का खतरा बढ़ सकता है। अनुसंधानों में यह भी पाया गया है कि ए2 प्रकार सुरक्षित है, इसमें कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता, यह लैक्टोज असहिष्णु (lactose intolerant) व्यक्तियों के लिए लाभदायक है और समग्र स्वास्थ्य के लिए बेहतर माना जा रहा है। यह लेख ए1 और ए2 दूध के संभावित प्रभावों, उनके स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं और देशी गायों की भूमिका पर चर्चा करता है।
ए1 और ए2 दूध
वर्तमान वैज्ञानिक साहित्य के अनुसार, गाय द्वारा उत्पादित दूध के केसिन के प्रकार का निर्धारण उसके जीनोटाइप पर निर्भर करता है। गाय ए1 या ए2 के लिए समरूप (homozygous) हो सकती है या फिर सह-प्रधानता (co-dominance) के रूप में ए1 और ए2 दोनों जीनों को धारण कर सकती है। मूल रूप से, सभी गायें ए2 दूध ही उत्पन्न करती थीं, लेकिन लगभग 3000 वर्ष पूर्व यूरोप में ए2 β-केसिन जीन में एक उत्परिवर्तन हुआ, जिससे ए1 प्रकार विकसित हुआ।

ए1 और ए2 दूध में भिन्नता उनके 67वें अमीनो अम्ल में पाई जाती है, जहाँ ए1 दूध में हिस्टिडीन (Histidine) और ए2 दूध में प्रोलाइन (Proline) होता है। ए1 प्रकार के दूध के पाचन के दौरान, एक जैव-सक्रिय पेप्टाइड 'ओपिओइड' β-कासोमोर्फिन-7 (BCM-7) का निर्माण होता है। BCM-7 को मानव स्वास्थ्य के लिए संभावित रूप से हानिकारक माना जाता है, क्योंकि यह तंत्रिका, प्रतिरक्षा (immune), और अंतःस्रावी (endocrine) तंत्रों के ओपिओइड रिसेप्टर्स को प्रभावित कर सकता है। BCM-7 के अवशोषण के बाद यह तंत्रिका ऊतकों में संचित होकर अंतःस्रावी और श्वसन तंत्र को प्रभावित कर सकता है।
ए1 दूध और स्वास्थ्य समस्याओं जैसे टाइप 1 डायबिटीज मेलिटस (Type 1 Diabetes Mellitus), हृदय रोग (Cardiovascular Diseases), बच्चों में मनोमंद विकास (Delayed Psychomotor Development), ऑटिज़्म (Autism), स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia), अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (Sudden Infant Death Syndrome), स्वप्रतिरक्षी रोग (Autoimmune Diseases), असहिष्णुता (Intolerances) और एलर्जी (Allergies) के बीच संबंध देखा गया है। विशेष रूप से अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis), पेट के अल्सर (Stomach Ulcers) और दीर्घकालिक एंटीबायोटिक उपचार से गुजर रहे मरीजों के लिए ए1 दूध अधिक हानिकारक हो सकता है।
ए1 और ए2 दूध से संबंधित मवेशी नस्लें
शोधकर्ताओं ने पाया है कि पिछले कुछ हजार वर्षों में यूरोपीय मवेशियों का एशियाई और अफ्रीकी मवेशियों के साथ क्रॉस-प्रजनन (संकर प्रजनन) करने से संकर पशुओं में ए1 जीन के निर्माण की संभावना उत्पन्न हुई हो सकती है। दुधारू पशुओं में ए1 और ए2 बीटा-केसीन (β-casein) उत्पादन का अनुपात प्रजातियों, नस्लों और भौगोलिक स्थानों के अनुसार अत्यधिक भिन्न होता है। यह भिन्नता नस्ल-विशिष्ट की तुलना में अधिक क्षेत्र-विशिष्ट पाई गई है।
ए1 प्रकार उत्तरी यूरोपीय नस्लों जैसे फ्रीज़ियन (Friesian), होल्स्टीन (Holstein), एरशायर (Ayrshire), और ब्रिटिश शॉर्टहॉर्न (British Shorthorn) में आमतौर पर पाया गया है, जबकि ए2 प्रकार उन कई देशी गायों में पाया गया है, जिन्हें आनुवंशिक रूप से संशोधित नहीं किया गया है, जैसे चैनल द्वीप समूह की गायें (Channel Island cows), ग्वेर्नसे (Guernsey) और जर्सी (Jersey) नस्लें, दक्षिणी फ्रांस की चारोलैस (Charolais) और लिमोसिन (Limousin) नस्लें, अफ्रीका मूल की ज़ेबू (Zebu), और भारतीय गिर (Gir) गाय।
भारत में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए क्रॉस-प्रजनन पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिससे हमारे राष्ट्रीय पशुधन में होल्स्टीन और जर्सी नस्लों की संख्या में वृद्धि हुई है। ये दोनों नस्लें ए1 या ए2 दूध का उत्पादन कर सकती हैं, लेकिन जर्सी नस्ल में ए2 दूध की उपस्थिति अधिक पाई गई है।
राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR), करनाल द्वारा 22 देशी गाय नस्लों पर किए गए अनुसंधान में यह प्रमाणित हुआ कि भारत की अधिकांश मूल नस्लें ए2ए2 जीनोटाइप वाली हैं, जिससे यह साबित होता है कि हमारे स्वदेशी भैंसों और गायों का दूध केवल ए2 प्रकार का होता है। पांच प्रमुख दुधारू नस्लों (रेड सिंधी, गिर, राठी, साहीवाल और थारपारकर) में ए2 एलील (A2 allele) की उपस्थिति 100% पाई गई, जिसका अर्थ है कि इन नस्लों में ए1 एलील (A1 allele) या ए1ए1/ए1ए2 जीनोटाइप की अनुपस्थिति पाई गई। अन्य नस्लों में ए2 एलील की उपस्थिति लगभग 94% आंकी गई है।
वर्तमान में कई देश डीएनए परीक्षण (DNA testing) के माध्यम से अपने दुग्ध उत्पादक पशुओं के दूध प्रोटीन प्रकार की जांच कर रहे हैं, और कई देशों में इसके लिए वाणिज्यिक परीक्षण किट (commercial testing kits) उपलब्ध हैं। हालांकि, भारत में खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक) विनियम, 2011 (Food Safety and Standards (Food Product Standards and Food Additives) Regulations, 2011) के अंतर्गत दूध के ए1 और ए2 प्रकार के आधार पर किसी भिन्नता को मान्यता या उल्लेख नहीं दिया गया है।
ए1 और ए2 दूध से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ
टाइप 1 डायबिटीज मेलिटस (DM-1)
ए1 दूध की टाइप 1 डायबिटीज मेलिटस (DM-1) के विकास में भूमिका कई वर्षों से एक विवादास्पद विषय रही है। ऐसा माना जाता है कि ए1 β-केसीन (A1 β-casein) बीसीएम-7 (BCM-7) नामक ओपिओइड पेप्टाइड (opioid peptide) को मुक्त कर, उन बच्चों में DM-1 के जोखिम को बढ़ा सकता है, जिनमें आनुवंशिक रूप से इस रोग के विकसित होने की प्रवृत्ति होती है। BCM-7 प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) को प्रभावित करता है और अग्न्याशय (pancreas) की β-कोशिकाओं (β-cells) के विरुद्ध स्वतःप्रतिकारक (autoantibodies) उत्पन्न करता है।
चूहों और चूहियों पर किए गए अधिकांश पशु प्रयोगों में ए1 β-केसीन की डायबिटोजेनिक (diabetogenic) गतिविधि ओपिओइड रिसेप्टर्स (opioid receptors) के माध्यम से देखी गई, जबकि ए2 β-केसीन के सेवन से कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं देखा गया।
कोरोनरी हृदय रोग (CHD)
ए1/ए2 परिकल्पना (A1/A2 hypothesis) यह सुझाव देती है कि उच्च स्तर का ए1 β-केसीन कोरोनरी हृदय रोग (Coronary Heart Disease - CHD) के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। दूध प्रोटीन का CHD पर प्रभाव प्लाज्मा कोलेस्ट्रॉल (plasma cholesterol) में वृद्धि के रूप में देखा गया है, जो ए1 β-केसीन के कारण होता है।
शोध में यह पाया गया है कि एथेरोस्क्लेरोटिक घावों (atherosclerotic lesions) में टायरोसिल (Tyrosyl) की उपस्थिति होती है, जो β-केसीन का एक ऑक्सीकरण उत्पाद (oxidation product) है। BCM-7 को निम्न घनत्व लिपोप्रोटीन (Low-Density Lipoprotein - LDL) का संभावित स्रोत माना जाता है, जिसे मैक्रोफेज (macrophages) द्वारा निगला जाता है और इस प्रकार एथेरोस्क्लेरोसिस (atherosclerosis) की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।
एक अध्ययन में यह पाया गया कि ए1 दूध का सेवन करने वाले खरगोशों में कोलेस्ट्रॉल का स्तर अधिक था और उनके महाधमनी (aorta) की सतह पर फैटी धारियों (fatty streaks) की मात्रा ए2 दूध पीने वाले खरगोशों की तुलना में अधिक थी।
अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (Sudden Infant Death Syndrome - SIDS)
श्वसन संक्रमण (respiratory infections), मस्तिष्क संबंधी असामान्यताएँ (brain abnormalities), और कम जन्म वजन (low birth weight) नवजात शिशुओं की मृत्यु के कुछ संभावित कारण हैं।
ऐसा माना जाता है कि BCM-7 अपरिपक्व नवजात जठरांत्र मार्ग (immature juvenile GI tract) से रक्तप्रवाह में अवशोषित हो जाता है और अपरिपक्व केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (immature central nervous system) के कारण रक्त-मस्तिष्क बाधा (blood-brain barrier) को पार कर सकता है।
BCM-7 मस्तिष्क तंत्रिका केंद्र (brainstem) के श्वसन नियंत्रण केंद्र को अवसादग्रस्त (depress) कर देता है, जिसके परिणामस्वरूप नवजात की मृत्यु हो सकती है।
तंत्रिका संबंधी रोग (Neurological Diseases)
कई अध्ययनों ने संकेत दिया है कि BCM-7 ऑटिज़्म (Autism) और सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) के रोगजनन (pathogenesis) में शामिल हो सकता है।
कुछ शोधकर्ताओं ने यह भी इंगित किया है कि दूध पेप्टाइड्स (milk peptides) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system - CNS) पर न्यूरोट्रांसमीटर (neurotransmitters) के साथ अंतःक्रिया (interaction) कर विषाक्त प्रभाव (toxic effects) उत्पन्न कर सकते हैं।
जठरांत्र संबंधी असुविधा (Gastrointestinal Discomfort)
दूध और दुग्ध उत्पादों के सेवन से लैक्टोज असहिष्णुता (lactose intolerance), ए1 प्रोटीन असहिष्णुता (A1 protein intolerance), और BCM-7 की उपस्थिति के कारण दूध असहिष्णुता सिंड्रोम (milk intolerance syndrome) वाले व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि देखी गई है।
BCM-7 जठरांत्र मार्ग (GIT) में भोजन की गति को धीमा कर देता है, जिससे लैक्टोज किण्वन (lactose fermentation) का समय बढ़ जाता है।
शोध में यह पाया गया है कि BCM-7 µ-रिसेप्टर्स (µ-receptors) को उत्तेजित कर जठरांत्र गतिशीलता (GI motility) को प्रभावित करता है, जिससे वयस्कों और नवजात शिशुओं दोनों में पाचन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है।
इसके अतिरिक्त, ए1 β-केसीन को एक स्थानीय भड़काऊ प्रतिक्रिया (local inflammatory response) को प्रेरित करने की सूचना दी गई है, जो प्रयोगात्मक जानवरों में मायेलोपेरोक्सिडेज़ (myeloperoxidase) जैसे प्रो-इंफ्लेमेटरी मार्कर (pro-inflammatory markers) के स्राव के रूप में प्रतिबिंबित होती है।
निष्कर्ष
गौ दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद लंबे समय से भारतीय आहार का एक प्रमुख हिस्सा रहे हैं। ब्राज़ील और अर्जेंटीना जैसे देशों में प्रचलित आनुवंशिकी (Genetics) और वंशावली चयन (Pedigree Selection) के विश्लेषण के आधार पर, हमारी देशी मवेशी नस्लों को पर्याप्त मात्रा में दूध उत्पादन के लिए विकसित किया जा सकता है। संकर गायें (Hybrid Cows) मुख्य रूप से ए1 दूध का उत्पादन करती हैं, जिसे मनुष्यों में विभिन्न प्रकार की चिकित्सकीय विकृतियों (Medical Disorders) का कारण माना जाता है। इसके विपरीत, भारतीय देशी नस्लों द्वारा उत्पादित ए2 दूध को अधिक पाचनीय (Digestible) पाया गया है और इसे स्वास्थ्य संबंधी किसी भी प्रतिकूल प्रभाव (Adverse Effects) से नहीं जोड़ा गया है। इस प्रकार, ए1 दूध की तुलना में ए2 दूध के अनेक लाभ होने का अनुमान लगाया जाता है। विभिन्न अध्ययनों (Studies) से प्राप्त निष्कर्षों के बावजूद, इस विषय पर और अधिक समीक्षा (Scrutiny) एवं अनुसंधान (Research) की आवश्यकता है। यदि भविष्य में अनुसंधान यह सिद्ध करता है कि ए2 दूध सभी संभावित स्वास्थ्य जोखिमों (Health Risks) को समाप्त करने में सक्षम है, तो दुग्ध आपूर्ति श्रृंखला (Milk Supply Chain) में उचित परिवर्तन अनिवार्य किया जाना चाहिए।
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